‘Let There Be Peace!’ मुस्लिम देश बोले – ‘चलो अब कुछ अच्छा होने दो'”

हुसैन अफसर
हुसैन अफसर

जब दुनिया को लगा कि ट्रंप अब शांति वार्ताओं से रिटायर हो चुके हैं, तब उन्होंने नेतन्याहू के साथ मिलकर ग़ज़ा के लिए नया शांति प्रस्ताव पेश कर दिया। इस प्रस्ताव का मक़सद – “युद्ध नहीं, पुनर्निर्माण” और “टैंक नहीं, टेबल टॉक”

मुस्लिम देशों का ‘Unexpected Support’

क़तर, जॉर्डन, सऊदी अरब, यूएई, पाकिस्तान, तुर्की, इंडोनेशिया और मिस्र – यानी वो देश जो आमतौर पर अलग-अलग मत रखते हैं – इस बार एक सुर में बोले:
“ट्रंप की कोशिश सराहनीय है।”
कई तो इस बयान से इतना खुश हो गए कि लगा जैसे यूएन की मीटिंग नहीं, दोस्त की शादी में शामिल हो रहे हों।

क्या है ट्रंप-नेतन्याहू की Peace Plan?

इस प्रस्ताव के मुख्य बिंदु:

ग़ज़ा में फायर बंद

पुनर्निर्माण के लिए आर्थिक मदद

फ़लस्तीनी विस्थापन को रोकना

स्थायी समाधान की दिशा में कदम

अब देखना ये है कि ये “Peace Plan” कब “Peace Please” में बदलता है।

ट्रंप की डिप्लोमैसी: एक फोन कॉल दूर

मंत्रियों ने माना कि ट्रंप की “लीडरशिप स्किल्स” और “शांति स्थापित करने की क्षमता” असाधारण है। कुछ तो यह कहने तक पहुंच गए कि – “ट्रंप न होते, तो शायद ये प्रस्ताव कभी न आता!”

“Peace के साथ Partnership भी चाहिए”

साझा बयान में कहा गया कि शांति सिर्फ एक देश से नहीं आएगी। सभी पक्षों – अमेरिका, इज़राइल, अरब देश – को एक साथ आना होगा।
बयान कुछ यूं था – “आइए मिलकर Middle East को Netflix ड्रामा से News Headlines में लाएं, वो भी Positive!”

Ground Reality Check: ‘Proposals बहुत हैं, Progress कम’

इतिहास गवाह है कि ऐसे शांति प्रस्ताव अक्सर “PDF फॉर्मेट” में ही रहते हैं। लागू कब होंगे, ये वक्त बताएगा।

Peace Plan अच्छा है, Implementation Plan और भी बेहतर हो

ट्रंप-नेतन्याहू की नई ग़ज़ा योजना को लेकर उम्मीदें जगी हैं। लेकिन ये उम्मीद सिर्फ बयानबाज़ी से नहीं, धरातल पर शांति की फीलिंग से पूरी होगी।

अगर ट्रंप Nobel Peace Prize नहीं भी जीत पाए तो क्या? Middle East की शांति WhatsApp पर तो आ ही जाएगी!

“पानी पीयो सोच समझ के, छिंदवाड़ा में किडनी कह रही – ‘I Quit!’”

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